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Strawberry Cultivation

अब उत्तर प्रदेश में होगी स्ट्रॉबेरी की खेती, सरकार ने शुरू की तैयारी

अब उत्तर प्रदेश में होगी स्ट्रॉबेरी की खेती, सरकार ने शुरू की तैयारी

स्ट्रॉबेरी (strawberry) एक शानदार फल है। जिसकी खेती समान्यतः पश्चिमी ठन्डे देशों में की जाती है। लेकिन इसकी बढ़ती हुई मांग को लेकर अब भारत में भी कई किसान इस खेती पर काम करना शुरू कर चुके हैं। पश्चिमी देशों में स्ट्रॉबेरी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है जो वहां पर किसानों के लिए लाभ का सौदा है। इसको देखकर दुनिया में अन्य देशों के किसान भी इसकी खेती शुरू कर चुके हैं। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती करना और उसे खरीदना एक स्टेटस का सिंबल है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार दिनोंदिन इस खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रही है। इसके लिए प्रदेश में नई जमीन की तलाश की जा रही है जहां स्ट्रॉबेरी की खेती की जा सके। [caption id="attachment_10376" align="alignright" width="225"]एक उत्तम स्ट्रॉबेरी (A Perfect Strawberry) एक उत्तम स्ट्रॉबेरी (A Perfect Strawberry)[/caption] उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत आने वाले उद्यान विभाग की गहन रिसर्च के बाद यह पाया गया है कि प्रयागराज की जमीन और जलवायु स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए पूरी तरह से उपयुक्त है। इसके लिए सरकार ने प्रायोगिक तौर पर कार्य करना शुरू किया है और बागवानी विभाग ने 2 हेक्टेयर जमीन में खेती करना शुरू कर दी है, जिसके भविष्य में बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। बागवानी विभाग के द्वारा प्रयागराज की जमीन की स्ट्रॉबेरी की खेती करने के उद्देश्य से टेस्टिंग की गई थी जिसमें बेहतरीन परिणाम निकलकर सामने आये हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़े सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही प्रयागराज में बड़े पैमाने पर स्ट्रॉबेरी की खेती आरम्भ की जाएगी।

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स्ट्रॉबेरी की खेती करना बेहद महंगा सौदा है। लेकिन इस खेती में मुनाफा भी उतना ही शानदार मिलता है जितनी लागत लगती है। स्ट्रॉबेरी की खेती में लागत और मुनाफे का अंतर अन्य खेती की तुलना में बेहद ज्यादा होता है। भारत में स्ट्रॉबेरी की एक एकड़ में खेती करने में लगभग 4 लाख रुपये की लागत आती है। जबकि इसकी खेती के बाद किसानों को प्रति एकड़ 18-20 लाख रुपये का रिटर्न मिलता है, जो एक शानदार रिटर्न है। प्रयागराज के जिला बागवानी अधिकारी नलिन सुंदरम भट्ट ने बताया कि एक हेक्टेयर (2.47 एकड़) खेत में लगभग 54,000 स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए जा सकते हैं और साथ ही इस खेती में ज्यादा से ज्यादा जमीन का इस्तेमाल किया जा सकता है। [caption id="attachment_10375" align="alignleft" width="321"]आधा स्ट्रॉबेरी दृश्य (Half cut strawberry view) आधा स्ट्रॉबेरी आंतरिक संरचना दिखा रहा है (Half cut strawberry view)[/caption] खेती विशेषज्ञों के अनुसार स्ट्रॉबेरी की खेती को ज्यादा पानी की जरुरत भी नहीं होती है। यह भारतीय किसानों के लिए एक शुभ संकेत है क्योंकि भारत में आजकल हो रहे दोहन के कारण भूमिगत जल लगातार नीचे की ओर जा रहा है, जिसके कारण ट्यूबवेल सूख रहे हैं और सिंचाई के साधनों में लगातार कमी आ रही है। इसलिए भारतीय किसान अन्य खेती के साथ स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए भी पानी का उचित प्रबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि सिंचाई के लिए उपयुक्त मात्रा में पानी की उलब्धता बनाई जा सके।    

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स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए रेतीली मिट्टी या भुरभुरी जमीन की जरुरत होती है। इसके साथ ही स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए 12 से लेकर 18 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान हो तो बहुत ही अच्छा होता है। यह परिस्थियां उत्तर भारत में सर्दियों में निर्मित होती हैं, इसलिए सर्दियों के समय स्ट्रॉबेरी की खेती किसान भाई अपने खेतों में कर सकते हैं और मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। इजरायल की मदद से भारत में अब ड्रिप सिंचाई पर भी काम तेजी से हो रहा है, यह सिंचाई तकनीक इस खेती के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस माध्यम से सिंचाई करने पर सिंचाई की लागत में किसान भाई 30 प्रतिशत तक की कमी कर सकते हैं। इसके साथ ही भारी मात्रा में पानी की बचत होती है। ड्रिप सिंचाई का सेट-अप खरीदना और उसे इस्तेमाल करना बेहद आसान है। आजकल बाजार में तरह-तरह के ब्रांड ड्रिप सिंचाई का सेट-अप किसानों को उपलब्ध करवा रहे हैं। [caption id="attachment_10377" align="alignright" width="300"]एक नर्सरी पॉट में स्ट्रॉबेरी (strawberries in a nursery pot) एक नर्सरी पॉट में स्ट्रॉबेरी (Strawberries in a nursery pot)[/caption] उत्तर प्रदेश के बागवानी अधिकारियों ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में एक एकड़ जमीन में लगभग 22,000 पौधे या एक एक हेक्टेयर जमीन में लगभग 54,000 पौधे  लगाए जा सकते हैं। इस खेती में किसान भाई लगभग 200 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज ले सकते हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती में लाभ का प्रतिशत 30 से लेकर 50 तक हो सकता है। यह फसल के आने के समय, उत्पादन, डिमांड और बाजार भाव पर निर्भर करता है। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती सितम्बर और अक्टूबर में शुरू कर दी जाती है। शुरूआती तौर पर स्ट्रॉबेरी के पौधों को ऊंची मेढ़ों पर उगाया जाता है ताकि पौधों के पास पानी इकठ्ठा होने से पौधे सड़ न जाएं। पौधों को मिट्टी के संपर्क से रोकने के लिए प्लास्टिक की मल्च (पन्नी) का उपयोग किया जाता है। स्ट्रॉबेरी के पौधे जनवरी में फल देना प्रारम्भ कर देते हैं जो मार्च तक उत्पादन देते रहते हैं। पिछले कुछ सालों में भारत में स्ट्रॉबेरी की तेजी से डिमांड बढ़ी है। स्ट्रॉबेरी बढ़ती हुई डिमांड भारत में इसकी लोकप्रियता को दिखाता है। [caption id="attachment_10379" align="alignleft" width="300"]स्ट्रॉबेरी की सतह का क्लोजअप (Closeup of the surface of a strawberry) स्ट्रॉबेरी की सतह का क्लोजअप (Closeup of the surface of a strawberry)[/caption] उत्तर प्रदेश के बागवानी विभाग ने बताया कि सरकार स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। इसके अंतर्गत सरकार किसानों को स्ट्रॉबेरी के पौधे 15 से 20 रूपये प्रति पौधे की दर से मुहैया करवाने जा रही है। सरकार की कोशिश है कि किसान इस खेती की तरफ ज्यादा से ज्यादा आकर्षित हो ताकि किसान भी इस खेती के माध्यम से ज्यादा मुनाफा कमा सकें। सरकार के द्वारा सस्ते दामों पर उपलब्ध करवाए जा रहे पौधों को प्राप्त करने के लिए प्रयागराज के जिला बागवानी विभाग में पंजीयन करवाना जरूरी है। जिसके बाद सरकार किसानों को सस्ते दामों में पौधे उपलब्ध करवाएगी। पंजीकरण करवाने के लिए किसान को अपने साथ आधार कार्ड, जमीन के कागज, आय प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, बैंक की पासबुक, पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ इत्यादि ले जाना अनिवार्य है। [caption id="attachment_10380" align="alignright" width="300"]पके और कच्चे स्ट्रॉबेरी (Ripe and unripe strawberries) पके और कच्चे स्ट्रॉबेरी (Ripe and unripe strawberries)[/caption] जानकारों ने बताया कि कुछ सालों पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में खास तौर पर सहारनपुर और पीलीभीत में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की गई थी। वहां इस खेती के बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं। सबसे पहले इन जिलों के किसानों की ये खेती करने में सरकार ने मदद की थी लेकिन अब जिले के किसान इस मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन चुके हैं। इसको देखते हुए सरकार प्रयागराज में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने को लेकर बेहद उत्साहित है। सरकार के अधिकारियों का कहना है, चूंकि इस खेती में पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है और पानी का प्रबंधन भी उचित तरीके से किया जा सकता है, इसलिए स्ट्रॉबेरी की खेती का प्रयोग सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के साथ लगभग 2 दर्जन जिलों में किया जा रहा है और अब कई जिलों में तो प्रयोग के बाद अब खेती शुरू भी कर दी गई है।
स्वीट कॉर्न की खेती ने बदली प्रगतिशील किसान दिनेश चौहान की किस्मत

स्वीट कॉर्न की खेती ने बदली प्रगतिशील किसान दिनेश चौहान की किस्मत

आज हम आपको स्वीट कॉर्न की खेती से हुए सफल किसान दिनेश चौहान के बारे में बताऐंगे। इस किसान ने अपने अथक परिश्रम के परिणाम स्वरूप एक ऐसा मुकाम हांसिल किया गया, जो कि हर कोई नहीं कर पाता है। ये किसान आज स्वीट कॉर्न की खेती सहित बाकी फसलों से वार्षिक 40 लाख रुपये तक की आमदनी कर रहे हैं।

वर्तमान में भारत के अंदर बहुत सारे ऐसे किसान हैं, जो आधुनिक तरीके से खेती कर बेहतरीन मुनाफा अर्जित कर रहे हैं। ऐसे उन्हीं किसानों में शुमार है, प्रगतिशील किसान दिनेश चौहान, जो हरियाणा के सोनीपत जनपद के मनौली गांव के निवासी हैं। दिनेश चौहान के मुताबिक, उनके गांव को स्वीट कॉर्न विलेज के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि उनके गांव में अधिकांश किसान स्वीट कॉर्न की खेती किया करते हैं। दिनेश चौहान का कहना है, कि वह आधुनिक तरीके से खेती कर वार्षिक शानदार मुनाफा प्राप्त कर रहे हैं। वह वर्ष 1996 से कृषि क्षेत्र से संबंधित हैं। वहीं, खेती-किसानी से ही अपना जीवन यापन कर रहे हैं। चौहान के अनुसार, उनके पास 30 एकड़ कृषि योग्य जमीन है, जिस पर वह कृषि करते हैं।

दिनेश चौहान ने 1998 में इन फसलों का उत्पादन किया 

दिनेश चौहान का कहना है, कि उन्होंने 1998 में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन शुरू किया था। इससे पूर्व वह पारंपरिक फसलों, जैसे- मक्का, गन्ने और गेहूं की खेती किया करते थे। चौहान ने 1998 में स्ट्रॉबेरी की खेती करना शुरू किया, क्योंकि वह खेती को एक उच्च स्तर पर ले जाना चाहते थे। उन्होंने बताया कि उस समय में लोग खेती को छोटी दृष्टि से देखा करते थे। किसानी को बहुत ही छोटा दर्जा दिया जाता था और पढ़े-लिखे युवा इस तरफ नहीं आकर, नौकरियों की तरफ भागते थे। वहीं, इसमें काफी स्कोप था, जिसके पश्चात उन्होंने इस दृष्टिकोण को बदलने की सोची और आधुनिक तरीके से खेती का प्रारंभ किया।

स्वीट कॉर्न की खेती ने दिनेश चौहान को दिलाई पहचान 

प्रगतिशील किसान दिनेश चौहान का कहना है, कि "उन्होंने धीरे-धीरे धान और गेहूं की खेती कम की, और स्ट्रॉबेरी के खेती पर ज्यादा जोर दिया। उन्होंने बताया कि उस समय किसान स्ट्रॉबेरी के खेती या उससे जुड़ी तकनीकों के बारे में नहीं जानते थे। लेकिन, धीरे-धीरे कुछ किसान उनके साथ जुड़े और उन्होंने सभी को इसकी खेती सिखाई। इसके कुछ सालों बाद उन्होंने बेबी कॉर्न या स्वीट कॉर्न की खेती शुरू की, जो इतनी सफल रही है की आज उनका गांव देश भर में स्वीट कॉर्न विलेज के नाम से जाना जाता है। साथ ही, गांव के किसानों को इसकी खेती से काफी शानदार मुनाफा अर्जित हो रहा है।

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उन्होंने बताया कि वह 2001 से स्वीट कॉर्न की खेती कर रहे हैं, जब देश में लोग इसके बारे ज्यादा नहीं जानते थे। उन्होंने कहा है, कि शुरुआत में लोग इसे अमेरिकन कॉर्न समझ कर खाते थे और लोगों को काफी बाद में जाकर इस बात की जानकारी हुई कि ये अमेरिका नहीं अपने ही देश के एक गांव में उगाई जा रही है। उन्होंने बताया कि शुरुआती समय में स्वीट कॉर्न की खेती के दौरान उन्हें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा। लोग न इसके बारे में ज्यादा जानते थे और न ही इसका बाजार था। लेकिन, धीरे-धीरे उन्होंने मंडियो में अपनी उपज भेजनी शुरू की, लोगों को इसके बारे में बताया और आज वह इसके माध्यम से वार्षिक अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। 

किसान वार्षिक लाखों रूपए की आय कर रहा है 

अगर लागत एवं मुनाफे की बात की जाए, तो स्वीट कॉर्न की एक एकड़ की खेती से तकरीबन 25 से 30 हजार रुपये की लागत आ जाती है, जिससे वह प्रति एकड़ एक से डेढ़ लाख रुपये तक मुनाफा हांसिल कर लेते हैं। इसके अतिरिक्त, खेती में उन्हें हरियाणा सरकार की योजनाओं और कृषि व बागवानी विभाग की भी सहायता मिलती रहती है। अगर इस हिसाब से देखें तो वे वार्षिक 40 लाख रुपये तक की आमदनी कर लेते हैं। उन्होंने अन्य किसानों को ये संदेश दिया की वे भी तकनीकी खेती से जुड़कर अपनी आर्थिक स्थिति को सशक्त बना सकते हैं। किसान मांग के अनुसार फसलीय उत्पादन करें।